है. इसके सफेद रंग के पाउडर को दूध या शर्बत के साथ मिलाकर लिया जाता है. कुछ लोग इसकी गोली भी लेते हैं.
यह
रसायन प्राकृतिक रूप से दिमाग़ में रहता है. हाल में कुछ ऐसे सबूत भी मिले
हैं कि अतिरिक्त क्रियेटीन मोनोहाइड्रेट लेने से याददाश्त और बुद्धि बढ़ती
है.
क्रियेटीन का सेवन करने वालों में पेशेवर युवा कम हैं, लेकिन
शरीर को गठीला बनाने के लिए वर्जिश करने वाले पिछले कई दशकों से इसका
इस्तेमाल कर रहे हैं. वे अपनी मांशपेशियों को बढ़ाने के लिए इसे लेते हैं.
अमरीका में स्पोर्ट्स सप्लीमेंट अरबों डॉलर का कारोबार है, जिसमें क्रियेटीन का अहम स्थान है.
2017
में कराये गए सर्वे के मुताबिक 22 फ़ीसदी वयस्कों ने माना था कि उन्होंने
एक साल के भीतर कोई स्पोर्ट्स सप्लीमेंट लिया है. यदि क्रियेटीन का कोई
बड़ा असर होता तो अब तक उसके परिणाम दिख जाने चाहिए थे.
स्टैंडफोर्ड
यूनिवर्सिटी के न्यूरो साइंटिस्ट एंड्रयू ह्यूबरमैन कहते हैं, "कुछ दवाइयां
सच में काम करती हैं." ये हैं उत्तेजक दवाइयां.
एंफेटामाइन्स और मिथाइल फेनिडेट- ये दोनों बहुत ही लोकप्रिय दवाइयां हैं, जो एड्रेल और रिटाडीन के ब्रांड नाम से बिकती हैं.
अमरीका
में इन दोनों दवाइयों को एडीएचडी ( ) डिस-ऑर्डर से पीड़ित रोगियों को
दिया जाता है. ये दवाइयां उन्हें आलसी होकर बैठने नहीं देती. साथ ही
एकाग्रता भी बढ़ाती हैं.
इन दवाइयों को वे भी लेते हैं जो प्रतियोगी माहौल में जीते हैं. इनके सहारे वे किसी काम की तरफ अपना ध्यान बढ़ाने की कोशिश करते हैं.
एंफेटामाइन्स
को बहुत पहले से स्मार्ट ड्रग्स माना जाता रहा है. लगातार काम में लगे रहने वाले गणितज्ञ पॉल एर्डोस इसका सेवन करते थे. लेखक ग्राहम ग्रीन ने एक
साथ दो किताबें लिखने के लिए इनका सेवन किया था. 2015 में पाया गया कि बुद्धि पर इन दवाइयों का असर कम
है. लेकिन लोग इन दवाइयों को मानसिक क्षमता बढ़ाने के लिए लेते भी नहीं
हैं. वे इनका सेवन मानसिक ऊर्जा और प्रेरणा बढ़ाने के लिए करते हैं, यह
जानते हुए भी कि इनके गंभीर साइड इफेक्ट्स हैं.
एड्रेल और रिटालीन
लेने का एक असर तो यह है कि व्यक्ति सिर्फ़ दिमाग़ी काम ही कर पाता है. एक
अध्ययन से पता लगा कि ये दवाइयां लेने पर गणित के काम रुचिकर लगने लगते
हैं.
अगर सभी लोग इन उत्तेजक दवाइयों को लेने लगें तो क्या होगा?
दो
नतीजे स्पष्ट हैं. पहला यह कि लोग पसंद ना आने वाले काम भी करने लगेंगे.
ऑफिस में खाली बैठे रहने वाले लोग व्यस्त रहने लगेंगे और बोरियत से भरी
बैठकों में भी जोश से भाग लेने लगेंगे. दूसरा असर यह होगा कि प्रतियोगिता
बढ़ जाएगी.
न्यूट्रिशन कंपनी एचवीएमएन ( ) के सीईओ और सह-संस्थापक
ज्योफ्री वू के मुताबिक सिलिकॉन वैली और वॉल स्ट्रीट में काम करने वाले
लोगों में नूट्रोपिक दवाइयां लेने का चलन बढ़ा है.
डेन्टॉन इससे
सहमति जताते हैं. वे कहते हैं, "मुझे लगता है कि नूट्रोपिक दवाइयां
प्रतियोगिता बढ़ा रहा है. अमरीका में चीन और रूस से आए लोगों की संख्या बढ़
रही है. वे भी इन दवाइयों से फ़ायदा उठाना चाहते हैं."
एंफेटामाइन्स की संरचना क्रिस्टल मेथ की तरह है, जो एक ताक़तवर मादक
पदार्थ है. इसकी लत ने अनगिनत ज़िंदगियों को बर्बाद किया है और यह जानलेवा
भी है.
एड्रेल और रिटालीन की भी लत लगती है. जो लोग इनका सेवन करते
हैं, वे आसानी से इनको छोड़ नहीं पाते. घबराहट, बेचैनी, नींद ना आना, पेट
में दर्द, बाल झड़ना आदि इसके साइड इफेक्ट्स हैं.
कुल मिलाकर कहें तो उत्तेजक दवाइयों के सहारे काम करने वाले लोग दूसरे लोगों के मुक़ाबले बेहतर नहीं हो सकते.
ह्यूबरमैन
कहते हैं, "हो सकता है कि चार या 12 घंटे के लिए आप सामान्य से ज़्यादा
सक्रिय हो जाओ, लेकिन अगले 24 या 48 घंटों के लिए आपका फ़ोकस औसत से भी
नीचे होगा."
इन सारी बातों को ध्यान में रखकर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि उत्तेजक दवाइयां निकट भविष्य में दुनिया नहीं बदलने जा रही हैं.
इन दवाइयों से थोड़ी क़मजोर एक दवा और भी है जिसे डॉक्टर की पर्ची के
बिना भी ख़रीदा जा सकता है और जो सुपरमार्केट में भी बिकती हैं. यह है
कैफ़ीन.
अमरीका में लोग किसी भी सॉफ्ट ड्रिंक, चाय और जूस के
मुक़ाबले कॉफ़ी ज़्यादा पीते हैं. किसी ने अमरीका की आर्थिक तरक्की पर इसके
असर का अनुमान नहीं लगाया है, लेकिन इसके दूसरे फ़ायदों के बारे में
हज़ारों रिसर्च मौजूद हैं. यह साबित हुआ है कि कैफ़ीन इससे बने सप्लीमेंट से बेहतर है.
एक और बेहतर विकल्प निकोटीन है. वैज्ञानिक भी मानते हैं
कि तंबाकू में मिलने वाला निकोटीन एक असरदार नूट्रोपिक है, जो याददाश्त
बढ़ाता है और काम में ध्यान लगाता है. हालांकि इसके ख़तरे और साइड इफेक्ट्स
भी हैं.
ह्यूबरमैन कहते हैं, "कुछ बहुत ही मशहूर न्यूरो साइंटिस्ट
अपने दिमाग़ को सक्रिय रखने के लिए निकोरेट चबाते रहते हैं. लेकिन वे
धूम्रपान भी करते हैं और निकोरेट का इस्तेमाल उसके विकल्प के रूप में करते
हैं."
सवाल था कि क्या होगा अगर हम सभी स्मार्ट ड्रग्स लेने लगें?
हकीकत यह है कि हममें से अधिकतर लोग सुबह की कॉफ़ी के साथ ही स्मार्ट
ड्रग्स ले लेते हैं. यानी बाल्ज़ाक ने सदियों पहले जवाब तलाश लिया था.
नहीं थे जैसा मैंने उन्हें उनके पिछले साक्षात्कारों और मीडिया में देखा-सुना था. वो अलग नज़र आ रहे थे.
जिस
व्यक्ति को अपने शानदार व्यक्तित्व के कारण 'भारत का रिचर्ड ब्रैनसन' कहा
जाता था, वो असामान्य रूप से शांत, परेशान और तनावग्रस्त नज़र आया.मेशा की तरह आते ही माल्या की मुलाकात पत्रकारों और कैमरों से हो गई
जिन्होंने अपने लंबे सवालों की सूची उन पर दाग़ दी. वह इस तरह के मीडिया
दख़ल और तवज्जो के आदी हैं और जानते हैं कि मीडिया और उनके सवालों को कैसे संभालना है.
लेकिन आज उनकी आवाज़ और देह भाषा काफ़ी अलग थी. लेकिन
फिर भी हमेशा की तरह वह विनम्र थे और हर किसी के साथ सम्मान से पेश आ रहे
थे, भले ही बुधवार को उनकी आवाज़ शांत और धीमी थी. ये साफ़ दिखाई दे रहा था
कि वह मूड में नहीं थे और उनके चेहरे पर चिंता और अनिश्चितता साफ़ झलक रही
थी.
हालांकि उनके एक बयान से भारत में विवाद पैदा हो गया जब
उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि भारत छोड़ने से पहले वे भारत के वित्त
मंत्री अरुण जेटली से मिले थे.
जेटली ने अपने बयान में इस दावे को ख़ारिज कर दिया और कहा कि 'माल्या
राज्यसभा के सदस्य थे और कभी-कभी सदन में भी आया करते थे. ऐसे में उस
विशेषाधिकार का दुरुपयोग करते हुए जब मैं सदन का कार्यवाही के बाद अपने
कमरे की ओर जा रहा था तो वो मेरी ओर आए और चलते चलते कहा "मैं कर्ज़ चुकता
करने का एक ऑफ़र दे रहा हूं.'
जेटली का कहना है कि उन्होंने माल्या को भारतीय बैंकों के सामने अपना
प्रस्ताव रखने के लिए कहा. बाद में माल्या ने भी कहा कि उनके बयान को ग़लत
तरीके से पेश किया गया.
लेकिन भारत में विपक्षी दलों को हथियार मिल गया और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जेटली के इस्तीफ़े की मांग कर डाली.
अदालत
के कमरे में भी माल्या बहुत चुप, परेशान और गहरे विचार में थे. उन्होंने
ज़्यादा कुछ नहीं कहा और अपने वकील क्लेयर मोंटगोमेरी और भारत सरकार के
वकील मार्क समर्स के तर्कों को ध्यान से सुन रहे थे.
चीफ़
मजिस्ट्रेट एम्मा अर्बुथनोट इस मामले में जज हैं और यह उन्हें तय करना है
कि क्या माल्या को भारत में प्रत्यर्पित किया जाएगा या नहीं.
वह
दोनों वकीलों से उन चीज़ों को स्पष्ट करने को कहती रहीं जो उन्हें निश्चित
तौर पर नहीं पता था. उन्होंने सुनिश्चित किया कि इस मामले के पूरे तथ्य और
आंकड़े उनके सामने होंपूरी सुनवाई के दौरान मैंने देखा कि माल्या मिनरल वॉटर पी रहे थे और
अपने फ़ोन के मैसेज चेक कर रहे थे. इसके अलावा मैंने उन्हें बार-बार पब्लिक
गैलरी की ओर देखते पाया. जिस पब्लिक गैलरी में मैं अन्य पत्रकारों के साथ
बैठा था, वहीं माल्या की क़रीबी दोस्त पिंकी लालवानी और उनकी पीए भी बैठे
थे.
शायद इसलिए ही माल्या पब्लिक गैलरी की तरफ देख रहे थे. मैं उनके
शुभचिंतकों के ठीक पीछे बैठा था. मुझे लगता है कि वह इस कठिन समय में अपने क़रीबी और प्रियजनों से किसी तरह के आश्वासन और समर्थन की उम्मीद कर रहे
थे.
दोनों महिलाओं की मनोदशा और देह भाषा भी माल्या की तरह ही लग
रही थी. उन्होंने एक-दूसरे से बहुत कम बात की और लगातार अपने फ़ोन पर संदेश
भेज रहे थे. शायद परिवार और दोस्तों को अदालत की कार्रवाई के बारे में बता
रहे हों. वे दोनों भी परेशान और चिंतित दिखाई दे रहे थे.
एक मौके
पर पिंकी लालवानी की एक महिला पत्रकार के साथ छोटी सी बात पर हल्की सी बहस
हो गई जो मेरे साथ ही बैठी थी. मुझे लगता है कि उन्हें भी दबाव महसूस हो
रहा था.
हिमाचल प्रदेश में बंदरों का आतंक
इतना बढ़ चुका है कि इसका असर खेती पर दिखने लगा है. यहां के कई किसानों ने
बंदरों से त्रस्त होकर खेती छोड़ने का फ़ैसला किया है.
बंदरों का डर
इतना अधिक है कि इन्हें मारना भी कानूनन मान्य कर दिया गया है. हालांकि
लोग विभिन्न कारणों से अब भी इन्हें मारना नहीं चाहते.
साल 2014 में आई कृषि विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ बंदरों की वजह से फसलों को सालाना 184 करोड़ रुपये का नुक़सान हो रहा है.
हिमाचल
किसान सभा के अध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह तंवर ने बीबीसी को बताया, "खेती को
लेकर पहले ही समस्याएं कम नहीं हैं, कभी पानी की दिक़्क़त होती है तो कभी
बारिश के कारण मुश्किल होती है. लेकिन अब बंदरों के कारण भी ये घाटे का
सौदा साबित हो रही है. बंदर यहां किसानों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गए
हैं. किसानों की पूरी ताक़त फसलों को बंदरों से बचाने में लग रही है."
वो
कहते हैं, "हर साल हिमाचल प्रदेश के कृषि क्षेत्र में बंदरों की वजह से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर करोड़ों रुपये की फसल का नुक़सान हो रहा
है. यहां करीब 6.5 लाख हैक्टेयर ज़मीन है जिसमें से क़रीब 75 हजार हैक्टेयर
ज़मीन बंदरों और जंगली जानवरों के कारण लोगों ने बंजर छोड़ दी है."